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जिले भर में 123 गिद्धों की संख्या दर्ज,तीन साल बाद हुई गिद्धों की गणना

विलुप्त हो रही गिद्धों की प्रजाति में दिखी बढ़ोतरी

डिंडौरी(संतोष सिंह राठौर)पर्यावरण के सफाई दरोगा के नाम से मशहूर गिद्ध गणना का काम जिले में पूरा कर लिया गया है। बता दें कि तेजी से विलुप्त हो रहे गिद्धों की प्रजाति को लेकर तीन साल बाद फिर वन विभाग ने प्रदेशभर में एक साथ गिद्धों की गिनती का काम शुरू किया था। 16 फरवरी से 33 जिलों में आने वाले 900 से अधिक वन क्षेत्रों में वनकर्मियों से गिनती करवाई गई है।इसी के मद्देनजर सामान्य वन मंडल अंतर्गत सभी रेंजों में गिद्दों की तलाश की गई।जिसके परिणाम स्वरूप जिले में 123 गिद्धों की संख्या दर्ज की गई है, जो तीन साल पहले हुई गिद्ध गणना से अधिक आंकी गई है।इस बाबद अनुविभागीय अधिकारी वन सुरेंद्र जाटव ने बताया कि वनमंडल अधिकारी साहिल गर्ग के निर्देशन में 16 फरवरी से 18 फरवरी तक सभी वन परिक्षेत्रों में गिद्ध गणना की कार्रवाई को अंजाम दिया गया है।पिछली
गणना के मुकाबले वर्तमान में जिले में गिद्धों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। जिले की समनापुर, मेंहदवानी और शाहपुर रेंज के बीटों में गिद्दों की तलाश की गई जिसके बाद पिछली बार की अपेक्षा इस बार समनापुर में कुल 78, शहपुर में 45 और मेंहदवानी में एक गिद्ध पाया गया है। जो वन विभाग के लिए एक उपलब्धि है। क्योंकि गिद्धों की बढ़ती संख्या से पर्यावरण को काफी मदद मिलती है। अधिकारियों के मुताबिक जमीन और पेड़ों पर बैठे गिद्धों को गिनती में शामिल किया गया है। इस बार तीन दिन लगातार गिद्धों को लेकर सर्वे किया गया।फ़ोटो और लोकेशन के आधार पर यह सर्वे तीन दिनों तक सुबह के समय किया गया है, क्योंकि इस समय गिद्ध भोजन की तलाश में घोंसलों से निकलकर बाहर आते हैं। ये अन्य पक्षियों की तरह बार-बार उड़ान नहीं भरते हैं बल्कि एक स्थान पर आने के बाद 20-30 मिनट तक बैठे रहते हैं। आमतौर पर गिद्ध समूह में रहते हैं। सुबह छह से आठ बजे तक गिद्ध कम उड़ान भरते हैं।इस दौरान गिनती आसानी से की गई।
वन्यप्राणी विशेषज्ञों के अनुसार गिद्धों के विलुप्त होने का यह भी एक कारण है कि देशभर में खेतों में रसायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का अंधाधुन उपयोग किया जा रहा है। पशुओं को दूध बढ़ाने के लिए लगाए जाने वाले प्रतिबंधित इंजेक्शन और दर्दनाशक दवाईयां जो पशुओं को दी जाती हैं ऐसे में इन पशुओं की मौत होने पर इनके शवों को खुले में ही फेंक दिया जाता है। इन शवों का गिद्ध आहार के रूप में उपयोग करते हैं। इसके अलावा पहले शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के श्वानों की संख्या नियंत्रित करने श्वानों को जहर देकर मारा जाता था और शवों को बाहरी क्षेत्रों में फेंकते थे,जिनका भक्षण करने से गिद्ध भी जहरखुरानी का शिकार हो जाते थे। इन कारणों से तेजी से गिद्धों की मौत मैं होने से वे विलुप्त होने की कगार पर पहुंचने लगे हैं।

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