Union Budget 2023-24: औद्योगिक संगठनों ने जीएसटी की दरें कम करने की मांग की

उद्योगों को बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें कई बड़े कदम उठा रही हैं, लेकिन औद्योगिक संगठनों के पदाधिकारियों का कहना है कि सुधार के लिए केंद्रीय बजट में कई महत्वपूर्ण प्रविधान किए जाने की जरूरत है। लगभग सभी की यह मांग है कि जीएसटी के स्तर (स्लैब) कम किए जाएं। साथ ही जीएसटी की दरें भी कम हों। केंद्र और राज्य सरकार ईज आफ डूइंग बिजनेस की बात करती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका पालन ठीक से नहीं होता। उद्योग स्थापित करने के लिए कई समस्याओं से जूझना पड़ता है। केंद्रीय बजट को लेकर औद्योगिक संगठनों के पदाधिकारियों से बातचीत…
15वें वित्त आयोग के अनुमानों के अनुसार, कर और सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में अभी भी चार प्रतिशत से अधिक का अंतर है। सरकार 11.7 प्रतिशत के मौजूदा स्तर से मध्यम अवधि में 16 प्रतिशत कर-जीडीपी अनुपात तक पहुंचने का लक्ष्य रख सकती है। कर संग्रह बढ़ाने के लिए सरकार को त्रिस्तरीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। पहला, आयकर सीमा में भारी वृद्धि से बचें। अधिकांश टैक्स फाइलर 2.4 लाख रुपये से पांच लाख रुपये के ब्रैकेट में हैं। कर चोरी रोकने के लिए उनकी आय और संचालन की प्रभावी ट्रैकिंग हो। दूसरा, जीएसटी दरों को निम्न (आवश्यक के लिए), मानक (अधिकांश उत्पादों के लिए) और उच्च (अवगुण और विलासिता के सामान के लिए) तीन श्रेणी में करना चाहिए।तीसरा यह कि कर प्रशासन में सुधार से कर अनुपालन और संग्रह में वृद्धि हो सकती है। कर विवादों के लिए अपील की प्रक्रिया में तेजी लाने की कोशिश होनी चाहिए। अनिमेष जैन, चेयरमैनसीआइआइ, मध्य प्रदेश सूक्ष्म एवं मध्यम उद्योगों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट बनाया जाए या क्रेडिट गारंटी फार स्टैंडअप इंडिया स्कीम में एससी-एसटी वर्ग के उद्यमियों के लिए ऋण गारंटी कवर की सीमा कम से कम पांच करोड़ तक की जाए। केंद्रीय खरीद नीति में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) से 20 प्रतिशत तथा एससी-एसटी वर्ग की एमएसएमई से चार प्रतिशत खरीदी के नियम का कड़ाई से पालन कराने के लिए एक पोर्टल विकसित किया जाए।
उद्योगों को पंख लगाना है तो जीएसटी की दरें कम करनी होंगी। 18 प्रतिशत जीएसटी को 12 और 12 प्रतिशत को नौ प्रतिशत तक लाने की जरूरत है। दूसरी बात यह कि सरकार ईज आफ डूइंग बिजनेस की बात करती है, लेकिन धरातल में उतना सब कुछ नहीं हो पाता। सरकार जब तक इसे ठीक नहीं करती, नए उद्योगों के लिए बहुत अच्छा वातावरण नहीं कहा जा सकता।
सबसे पहले तो जीएसटी के टैक्स स्लैब (कर स्तर) कम करना चाहिए। आयकर रिटर्न भरने की सुविधा और आसान की जानी चाहिए। अभी बिना कंसलटेंट के रिटर्न फाइल नहीं कर सकते। छोटे केस में रिटर्न जल्दी आ जाता है, लेकिन बिजनेस के मामलों में आडिट के बाद भी ज्यादा समय लगता है। असेसमेंट में बहुत सारी रिकवरी निकाल दी जाती है। हजारों केस समाधान (रेक्टिफिकेशन) में चले जाते हैं।
आइल और पेट्रोलियम अभी जीएसटी में कवर नहीं है। इस कारण राज्यों में आयल के मूल्य में बहुत भिन्नता है। दूसरा यह कि सब्सिडी का मुद्दा लंबे समय से बना हुआ है। एक बड़ी मांग यह है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल और राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल दोनों के नियम लागू होने की जगह यह व्यवस्था केंद्रीकृत की जानी चाहिए।