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संबल योजना अंतर्गत प्रसूता सहायता एवं जननी सुरक्षा योजना में जांच के बाद f.i.r. पर उठ रहे सवाल

क्या डाटा एंट्री ऑपरेटर एवं दलाल ही खाते में डाल सकते हैंयोजना की राशि

मामले की होगी निष्पक्ष जांच या  दो  प्यादे के सहारे मामले को दबाने की जा रही कोशिश

जिला मुख्यालय अंतर्गत जिला चिकित्सालय का मामला

डिंडौरी( संतोष सिंह राठौर) प्रदेश सरकार के द्वारा अनेक योजनाएं प्रदेश वासियों के लिए संचालित किए गए हैं ताकि प्रदेश में रहने वाले मजदूर वर्ग एवं ऐसे व्यक्ति जो पिछड़े हुए हैं उनको पारिवारिक भरण पोषण में होने वाली असुविधा से निजात मिल सके पर संबंधित अधिकारी कर्मचारियों की निष्क्रियता के कारण योजनाओं का सफल संचालन नहीं हो पाने से शासन की योजनाओं पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं और हो भी क्यों ना, योजनाओं का संचालन तो कर दिया जाता है पर योजनाओं के बारे में मैदानी स्तर तक जानकारी शासन के द्वारा कभी नहीं ली जाती, फिर चाहे योजनाओं का लाभ जरूरतमंद हितग्राहियों को मिले या फिर किसी अन्य को रिकार्ड में तो संचालन हो रहा है मैदानी स्तर पर चाहे जो हो, ऐसा ही मामला संबल योजना अंतर्गत जननी सुरक्षा योजना एवं प्रसूति सहायता राशि में हुए फर्जीवाड़ा का सामने आया है जिसकी जांच चल रही थी जिस मामले को राष्ट्रीय हिंदी मेल न्यूज़ दैनिक अखबार ने प्रमुखता से उठाया था 3 माह की जांच के बाद कलेक्टर महोदय के निर्देश के बाद जिला अस्पताल डिंडौरी के द्वारा संबल योजना अंतर्गत हुए फर्जीवाड़ा के मामले में मामूली से दो प्यादे एक डाटा एंट्री ऑपरेटर ललित राजपूत विक्रमपुर एवं दलाल संतोष ठाकुर महाराज के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दिया गया जिस पर सवाल भी खड़े किए जा रहे हैं कि आखिर जिला अस्पताल प्रबंधन एवं जिला प्रशासन इस मामले पर क्या करने जा रही हैं क्या इन दो प्यादों के सहारे इस मामले को दबाने की कोशिश की जा रही है या फिर जिम्मेदार अधिकारियों को बचाने की

क्या दलाल एवं डाटा एंट्री ऑपरेटर को योजनाओं की राशि भुगतान करने का है पावर -?

वैसे तो डिंडोरी जिले के लिए कुछ भीअसंभव नहीं है जहां जीवित व्यक्ति अपने ही जीवित होने की सबूत देने मजबूर हो तो यहां कुछ भी असंभव नहीं है अधिकतर देखा जा रहा है कि जिला चिकित्सालय में ही अपने शिशु को जन्म देने के बाद शासन की प्रसूता सहायता राशि का लाभ प्राप्त करने मां जिला चिकित्सालय के चक्कर लगाने मजबूर है इसके बाद भी उसे उस राशि की भुगतान होने की संभावना नजर नहीं आती और वही एक ऐसे व्यक्ति जिसका इन सब से कोई लेना-देना नहीं उस व्यक्ति के खाते में शासन की योजनाओं की राशि का भुगतान कर दिया जाता है अब सवाल यह उठता है कि एक दलाल जो ग्रामीणों से आधार कार्ड बैंक पासबुक की फोटोकॉपी ली और डाटा एंट्री ऑपरेटर उन डाकॉमेंट के जरिए शासन की योजनाओं की राशि संबंधित ग्रामीणों को प्रदान कर दें यह विचार करने की बात है अगर ऐसा है तो जिला चिकित्सालय में अकाउंटेंट या उच्च अधिकारियों की आवश्यकता ही समझ में नहीं आती कि प्रशासन इनको आखिर क्यों नियुक्त करके रखे हुए हैं

क्या योजनाओं की फर्जीवाड़ा के संबंधित अधिकारी पर होगी कार्यवाही?

शासन की योजनाओं का इसी तरह बंटाधार होता रहेगा या फिर योजनाओं का सफल संचालन भी होगा जरूरतमंद हितग्राही को इन योजनाओं का लाभ मिल पाएगा या इसी तरह योजना का लाभ पाने चिकित्सालय के चक्कर लगाते रहेंगे क्या इस योजना के मुख्य मास्टरमाइंड जिम्मेदार अधिकारी पर कोई कार्यवाही होगी या इन 2 प्यादों के सहारे मामले को दफना दिया जाएगा

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